Sunday, September 22, 2019

नयी भोर

नयी भोर,

नया ठौर

नया शोर,

नया जोर,

रात्रि का भोज,

खूब हुई मौज

वही पास एक नीम तले,

भूखे बच्चे मचल रहे,

है कहाँ भौर और कहाँ ठौर ?

दब गया शोर, थम गया जोर !

जो जैसे थे वो वैसे हैं, उम्मीदे सींचे बैठे हैं,

कहीं-कभी एक पेड़ तनेगा,

दे फल न यदि, छाया तो देगा
उस भोर को, जल्दी लाने में,

इस तमस को दूर भागने में,

आओ मिलकर कुछ यत्न करे,

बालू से बदलकर रत्न बने

एक भविष्य को रचा-बसा

बदले भविष्य की दशा-दिशा.

नव वर्ष , हर क्षण, धेय्य रहे यही हम सबका

बगिया की फिर महकाने को, करे भाग्य उदय एक कोपल का