Monday, August 23, 2021

चुनाव

चुनाव का मौसम फिर से आया,

पूर्व मंत्री जी ने अपने क्षेत्र का दौरा लगाया,

सड़को पर गड्डो से परेशान होकर नेताजी ने फरमाया,

इन गड्डो से ये सिद्ध होता है,

की ये सरकार भ्रस्टाचार के दलदल में सनी है,

तभी किसी आदमी की सामने से आवाज आई,

ये सड़क आप के ही टाइम की बनी है !!!

Sunday, September 22, 2019

नयी भोर

नयी भोर,

नया ठौर

नया शोर,

नया जोर,

रात्रि का भोज,

खूब हुई मौज

वही पास एक नीम तले,

भूखे बच्चे मचल रहे,

है कहाँ भौर और कहाँ ठौर ?

दब गया शोर, थम गया जोर !

जो जैसे थे वो वैसे हैं, उम्मीदे सींचे बैठे हैं,

कहीं-कभी एक पेड़ तनेगा,

दे फल न यदि, छाया तो देगा
उस भोर को, जल्दी लाने में,

इस तमस को दूर भागने में,

आओ मिलकर कुछ यत्न करे,

बालू से बदलकर रत्न बने

एक भविष्य को रचा-बसा

बदले भविष्य की दशा-दिशा.

नव वर्ष , हर क्षण, धेय्य रहे यही हम सबका

बगिया की फिर महकाने को, करे भाग्य उदय एक कोपल का

Thursday, April 9, 2015

तपिश

सूरज कि तपिश आज लगती मुरझाई है,


इश्क की आग से फिर उसने मात खायी है....

नयी भोर

नयी भोर,

नया ठौर

नया शोर,

नया जोर,

रात्रि का भोज,

खूब हुई मौज

वही पास एक नीम तले,

भूखे बच्चे मचल रहे,

है कहाँ भौर और कहाँ ठौर ?

दब गया शोर, थम गया जोर !

जो जैसे थे वो वैसे हैं, उम्मीदे सींचे बैठे हैं,

कहीं-कभी एक पेड़ तनेगा,

दे फल न यदि, छाया तो देगा

उस भोर को, जल्दी लाने में,

इस तमस को दूर भागने में,

आओ मिलकर कुछ यत्न करे,

बालू से बदलकर रत्न बने

एक भविष्य को रचा-बसा

बदले भविष्य की दशा-दिशा.

नव वर्ष , हर क्षण, धेय्य रहे यही हम सबका

बगिया की फिर महकाने को, करे भाग्य उदय एक कोपल का  !!

Sunday, August 5, 2012

मौसम

जिन्हें दिल में रखते हो उनसे क्या मिलने कि तम्मना रखते हो, 
इश्क कोई मौसम नहीं जो बदलने कि गुजारिश करते हो...........

तमन्ना

ख़ामोशियो को समझने की तमन्ना है धीरे धीरे,
जिन्दगी फिर खुल के जीने की तमन्ना है धीरे धीरे !!!

बेवफ़ा

सुर्ख रंग था इज़हारे मोहब्बत का,
बेवफ़ा ने ज़ख्मो की सुर्खियत को भी बेरंग करार दिया !

Sunday, November 29, 2009

याद

आती नहीं थी नींद उनकी याद में हमें,
हमारी यादो से भरे,
अब उनके सपने भी नहीं होते...

Thursday, November 5, 2009

पहचान

सारी दुनिया को लेके साथ चला था,
पर मेरी दुनिया क्या है बस यही जान ना पाया,
अपनों की भीढ़ में थे सब बेगाने,
बेगाना था जो अपना उसे पहचान नहीं पाया!

Thursday, July 16, 2009

नवसृजन

बरस रहे अश्रु के बादल,
महि पर लहु सरि बहती कल-कल.
राह भटकते आज पखेरू,
अटल खड़ा है दुःख का सुमेरु.
आएँ कितनी भी विपदाएँ,
इन सबसे हम न घबराएँ.
पुरानंत को आज बांधकर,
दुर्लभ को हम सुलभ बनाये,
उठो पुनः नवविश्व सजाये,
उठो पुनः नवविश्व सजाये...