Saturday, February 28, 2009

शांति का पैगाम






















उग्र है बयार आज, चीखते सियार आज,
दर्द से कराहती, पुकारती माँ भारती,
ज्वाला के मध्य, तोड़ सारे बध्य,

मुट्ठी को तान के, खड़ा हो अब तू शान से,
कर्म अपना जान तू , इसे धर्म अपना मान तू ,
उरदीप को जला कर , संग सबको मिलकर,
शांति-पथ के कंटको को, स्वयं हाथों से निकाल दे ,
तेरा जो नाम है , उस नाम को पहचान दे ,
हो भविष्य सुखमय, इस वर्ष में ये ध्यान दे,
इंसानों की बस्ती में, तू शांति का पैगाम दे !!

1 comment:

  1. bahut hi badhiya kavita hai.. lekin mujhe aisa kyo lag raha hai ki maine ye kahi padhi hai.. feels like ye kisi bade writer ki poem hai .. aapne likhi hai ???

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