Saturday, July 11, 2009

जुगाड़


पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति समय के अनुरूप स्वयं को अनुकूलित करने वाले अलंकारों से परिपूर्ण है. यही कारण है की यह,समय बढने के साथ-साथ संवर्द्धित होती रही है. इन्ही गुणों में से बहुमूल्य रत्न के समान गुण है "जुगाड़" ! हमारी दादी माँ कहा करती थी, बाबा आदम के ज़माने से ही जुगाड़ का प्रयोग धड़ल्ले से होता आ रहा है.फर्क सिर्फ इतना है कि उस वक़्त यह "कृपा" या "आर्शीवाद" नाम से जाना जाता था.वक़्त बदलता रहा,युग बदले किन्तु जुगाड़ नाम कि यशस्वी परंपरा नहीं बदली. अपितु आज के युग में इसके पर्यायवाची शब्दों कि संख्या में खरपतवार कि तरह वृद्धि हुई है. कहा जाता है "जीवन दो पहियों कि गाड़ी के समान है" तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इसे घर्षणमुक्त चलने के लिए जिस लुब्रिकेंट अर्थात स्नेहक तेल कि आवश्यकता पड़ती है, वही जुगाड़ है. आज के समय में जुगाड़ नाम कि महत्ता इतनी है कि हमारे लगभग हर प्रदेश के साथ-साथ देश कि केंद्र सरकार भी जुगाड़ से ही चलती है.
सरकारी महकमों में नौकरी लेने की लालसा लिए उम्मीदवारो से सामान्यतः यह प्रश्न पुछा जाता है कि "कोई लैटर लाये हो "? यह भी जुगाड़ का समानार्थी है. हिन्दुस्तानी भाषाओ को पिछड़ा समझ आंग्ल भाषा के प्रयोग को अपनी शान समझने वाले तथाकथित विद्वान हिन्दुस्तानियो के लिए जुगाड़ शब्द का पर्याय "जैक" एवम "सेटिंग" है. बच्चे का स्कूल में अद्मिस्सिओं करवाना हो, कॉलेज में पेपर पास कराना हो या नम्बर बढ़वाना हो अर्थात शिक्षा संबधी अधिकांश कार्यो में जुगाड़ का उपयोग "जैक" एवम "सेटिंग" शब्द के रूप में होता है.
उच्च पदासीन व्यक्तियों अर्थात लालबत्तिधारी वी.आई.पी. बन्दों के मध्य काम निकलवाने के लिए जुगाड़ का प्रयोग "व्यवस्था" नाम से होता है. सभ्रान्त वर्ग "व्यवस्था" शब्द का उपयोग सोसाइटी में रुतबा बढाने के लिए या नौकरी में प्रमोशन पाने के लिए किया करते हैं.
यदि आपको सरकारी विभागों की परिक्रमा करने से दर लगता हो या बाबुओ द्वारा ली जाने वाली दक्षिणा से बचना हो तो हर मर्ज की एक ही दवा है "जुगाड़".
हमारे नेताओ के लिए जुगाड़ शब्द तो संजीवनी बूटी के समान है. हमारे नेता चुनाव में टिकेट पाने के लिए, टिकेट पा कर चुनाव जीतने के लिए, जीतकर मंत्री पद पाने के लिए जुगाड़ नाम की माला जपते हैं. यही नहीं, टिकेट न मिले तो अगले की टिकेट कटवाने के लिए भी जुगाड़ का इस्तेमाल किया जाता है. अब्राहम लिंकन का कहना कुछ भी हो परन्तु अपनी समझ में "जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए किये जाने वाला कर्म ही जुगाड़ है".
अब बात आती है हमारे भाई लोगो की, ये हमारे आजू-बाजू, आमने-सामने, भाई-बहन वाले भाई नहीं वरन वर्तमान समय में प्रचलित मुम्बईया स्टाइल के भाई अर्थात हर गली कूचो, हर मोहल्ले में एक-दो की संख्या में पाए जाने वाले गुंडा तत्वों, माफ़ कीजिये ! आसामाजिक तत्वों की श्रेणी का प्रतिनिधित्व करते है. इनकी जुबां में जुगाड़ शब्द का उच्चारण "पौअवा" है.
हमारे छात्र नेता भी चेले-चपाटियो पर धाक ज़माने के लिए अपने-अपने पौअवो की शोर्यगाथाये सुनते हुए धुए की गिरफ्त में हर टपरे पर मिल जाते हैं.
इस जुगाड़ नाम के तीन अक्षर के लघु शब्द की आत्मा में असीम मर्म छुपा हुआ है, जिसकी व्याख्या करना मुझ जैसे साधारण मानव के लिए तो संभव नहीं है, हाँ अगर रहीम कवि आज जीवित होते तो शायद यही कहते -
"रहिमन जुगाड़ राखिये, बिनु जुगाड़ सब सून !
जुगाड़ गए ना उबरे , मोती मानुष चून !!

1 comment: