Monday, July 13, 2009

बाल श्रम अपराध ?

कॉलेज से लौटने के पश्चात् रोज के मुताबिक प्रोफ़ेसर ज्ञानीजी घूमने निकले. रास्ते में दूर से बूढा पीपल और उसके नीचे बेठे दुक्खी काका दिखाई दे रहे थे. धंसे हुए गाल, झुर्रियों से भरा चेहरा, सिर पर सफेदी का जंगल और लगातार चलने वाली खांसी, यही कक्का की पहचान थी.
दो बरस पहले के भूकंप में उनके बेटे-बहु दोनों की बलि चढ़ गयी थी. बीवी तो बेटे का मुह देखने से पहले ही परलोक सिधार गयी थी. फैक्ट्री में काम करते समय हुए विस्फोट से उनके दोनों हाथो की भेंट प्रभु को चढ़ गयी थी. उन्हें देख कर शेक्सपियर भी अपनी यह बात नकार देता कि "नाम में क्या रखा है ?". अब इस गरीबी भरी बोझिल जिन्दगी में उनका एकमात्र सहारा था, ८ बरस का पोता मुन्ना !
बाबू साब राम-राम !
सोचते-सोचते प्रोफ़ेसर साब को ध्यान ही नहीं रहा कि कब पीपल के सामने पहुँच गए.
राम-राम कक्का ! और सुनाओ सब ठीक-ठाक है न ? प्रोफ़ेसर साब ने उत्तर दिया.
कक्का बोले "अब का ठीक है ? अपन मुन्ना पड़ोस के बनिया के इते रोजनदारी पर काम करत हतो. परसों कोई अफसर लोग आये और बच्चा-मजूरी के नाम पर बनिया से ५०० रूपया जुरमाना ले लओ, साथ में मुन्ना को काम भी छुड़वा दओ. मुना वापिस काम पर गओ तो बनिया ने ओको भगा दओ. अब आपई बताओ बाबुसाब ! जे बच्चा-मजूरी अपराध है या गरीबन कि दो जून कि रोटी छीनना ?”
और मोटी-मोटी किताबे लिखने वाले प्रोफ़ेसर ज्ञानीजी इस छोटी सी बात का उत्तर भी न दे पाए .

2 comments:

  1. baat to sahi hai...
    lekin .. dukaano me kaam karna allowed hai shayad... factories vagairah me nahi kar sakte kaam bachche..

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  2. ya it is true bt dunia mai har bachhe ko sab kuch nahi milta.....most important nothing impossible in this world go ahead i m with u and all with them who are in this way to stop this crime.......

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